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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022
गायत्री साधना के विलक्षण प्रभाव
अखण्ड ज्योति से सादर✍️ ‼️गायत्री साधना के विलक्षण प्रभाव‼️ *********** गायत्री
महामंत्र के विलक्षण प्रभाव एवं अद्भूत चमत्कारों के विषय में प्राचीन ऋषि-मुनियों
एवं सिद्ध-साधकों ने जगह-जगह पर महत्त्वपूर्ण उद्गार व्यक्त किए हैं। उच्च कोटि के
सिद्ध-संतों एवं मूर्धन्य आध्यात्मिक विज्ञानवेत्ताओं ने भी इस महामंत्र के अद्भूत
प्रभावों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। थियोसोफिकल सोसाइटी के विद्वान, श्री जे.
कृष्णमूर्ति ने गायत्री-उपासना से संबंधित उनके अनुभवों का वर्णन करते हुए लिखा है
कि विशेष रूप से गायत्री महामंत्र के प्रयोग ने उनके जीवन में विलक्षण परिणामों एवं
प्रभावों को जन्म दिया। उनके अनुसार इस मंत्र का उपयोग स्वार्थ के लिए न करके
परमार्थ के लिए किया जाना चाहिए। वे लिखते हैं कि गायत्री महामंत्र का जहाँ भावभरा
उच्चारण हो रहा होता है, देवता भी वहाँ सहायता करने के लिए पहुँच जाते हैं। गायत्री
महामंत्र वस्तुतः सविता देवता के, सूर्य देवता के आवाहन का मंत्र है। जब इस मंत्र
का उच्चारण किया जाता है, तब जपकर्ता पर स्थूल सूर्य में से प्रकाश के एक सशक्त
रश्मिसमूह का अवतरण होता है। जप के समय, प्रार्थना के समय - सूर्य चाहे उदय हो रहे
हों, चाहे मध्याह्न का समय हो या फिर संध्या के समय वे अस्ताचलगामी हों, सविता की,
सूर्य की शक्तिकिरणें जप करने वाले पर अवश्य पड़ती हैं। रात्रि के समय तो यह
किरणपुंज पृथ्वी की सतह को भेदकर आता है। विद्वानों का कहना है कि यह प्रकाश
श्वेतवर्ण का एवं कुछ सुनहलापन लिए हुए होता है। जब उसके द्वारा जप करने वाले का
हृदय भर उठता है, तब उसमें से इंद्रधनुष जैसी सतरंगी किरण बाहर निकलती है और जो कोई
भी जपकर्ता के सम्मुख होता है, उस पर शुभ प्रभाव डालती हैं। यह प्रभाव केवल जपकर्ता
के हृदय से ही बाहर नहीं निकलता, वरन उसके आभामंडल में से भी अर्द्धचंद्राकार रूप
में प्रकट होता है। हृदय एवं मस्तिष्क से निकलने पर ये किरणें सामने खडे़ व्यक्ति
के इन दोनों अंगों को प्रभावित करके संबंधित चक्रों को जाग्रत करती हैं। प्रत्येक
किरण एक ही नहीं, वरन अनेक मनुष्यों पर अपना प्रभाव डालती हैं। सूक्ष्मदर्शी
अध्यात्मवेत्ताओं के अनुसार, यदि सामान्य व्यक्ति का प्रभामंडल उसकी काया के बाहर
डेढ़ फीट तक बाहर निकलता हो तो उसके नीचे का भाग, नौ फीट लंबे और पाँच फीट चौडे़
क्षेत्र में फैल जाता है। जिस व्यक्ति का साधना-उपासना द्वारा विशेष रूप से आतंरिक
विकास और परिष्कार हो जाता है, उस का प्रभामंडल लगभग सत्रह-अठारह फीट तक पहुँच और
फैल सकता है और जब उसका आधा भाग वृत्ताकार बनता है, तो दूर-दूर के व्यक्तियों को
प्रभावित करने की क्षमता रखता है। यह प्रभा - मस्तिष्क से जितनी ऊपर जाती है, लगभग
उतनी ही दूर यह, पैरों के नीचे पृथ्वी के भीतर भी पहुँचती है। गायत्री महामंत्र का
जप करने वाले साधक का प्रभामंडल जितना अधिक विस्तृत होता है, वह उतना ही प्रभाव
डालने वाला भी होता है। सामूहिक रूप से जब मंत्रोच्चारण किया जाता है तो उसका
प्रभाव और भी विस्तृत हो जाता है और पृथ्वी के बहुत बडे़ क्षेत्र के मनुष्यों को
सूर्यगुच्छ {सोलर फ्लेअर} की भाँति प्रभावित करता है। अध्यात्म विद्याविशारदों ने
विविध प्रयोगों के माध्यम से इसकी सत्यता की पुष्टि भी कर दी। 🌹🙏🌹🙏 ---अखण्ड
ज्योति : जुलाई, २०१७ से साभार!
सोमवार, 11 अप्रैल 2022
दिशाएं 10 होती हैं
दिशाएं 10 होती हैं जिनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं- उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधो। एक मध्य दिशा भी होती है। इस तरह कुल मिलाकर 11 दिशाएं हुईं।
हिन्दू धर्मानुसार प्रत्येक दिशा का एक देवता नियुक्त किया गया है जिसे 'दिग्पाल' कहा गया है अर्थात दिशाओं के पालनहार। दिशाओं की रक्षा करने वाले।
10 दिशा के 10 दिग्पाल : उर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत।
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