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सोमवार, 30 सितंबर 2024

महिलाये भी श्राद्ध कर सकती है जाने गरुड़ पुरान् क्या कहता है

क्या महिलाएं श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान कर सकती हैं, जानें क्या कहता है गरुड़ पुराण? Garuda Purana: पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध या तर्पण का महत्व है. आमतौर पर पुरुष ही ये काम करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाएं भी पितरों के निमित्त श्राद्ध या तर्पण कर सकती हैं. गरुड़ पुराण हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु के बाद मृतक का श्राद्ध या तर्पण किया जाना जरूरी होता है. कहा जाता है कि, जब तक मृतक का श्राद्धकर्म, तर्पण या पिंडदान न किया जाए तब तक उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है. लेकिन आम जनमानस के बीच ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध केवल पुरुष द्वारा ही किया जा सकता है. हालांकि यह धारण पूरी तरह से सही नहीं है. गरुड़ पुराण में महिलाओं द्वारा श्राद्धकर्म, तर्पण या पिंडदान किए जाने की बात कही गई है. हालांकि इसमें कुछ ऐसी परिस्थितियों के बारे में भी बताया गया है, जिसमें महिला द्वारा पिंडदान या श्राद्ध किया जा सकता है. महिलाओं द्वारा तर्पण या श्राद्ध किए जाने पर क्या कहता है गरुड़ पुराण? गरुड़ पुराण में कुल 271 अध्याय और 18 हजार श्लोक हैं. गरुड़ पुराण के 11, 12,13 और 14 संख्या के श्लोक में इस बात का उल्लेख मिलता है कि हिंदू धर्म में श्राद्ध का क्या महत्व है, कौन और किस परिस्थिति में श्राद्ध कर सकता है, जोकि इस प्रकार से है- पुत्राभावे वधु कूर्यात, भार्याभावे च सोदन:। शिष्‍यों वा ब्राह्म्‍ण: सपिण्‍डो वा समाचरेत।। ज्‍येष्‍ठस्‍य वा कनिष्‍ठस्‍य भ्रातृ: पुत्रश्‍च: पौत्रके। श्राध्‍यामात्रदिकम कार्य पुत्रहीनेत खग:। अर्थ है: बड़े या छोटे बेटे या बेटी के अभाव में पत्नी या बहू द्वारा भी श्राद्ध किया जा सकता है. लेकिन पत्नी जीवित नहीं हो तो सगा भाई, भतीजा, भांजा भी श्राद्ध कर सकता है. वहीं इनमें से कोई भी नहीं हो तो किसी शिष्य, मित्र या रिश्तेदार द्वारा भी श्राद्ध किया जा सकता है. गरुड़ पुराण के इस श्लोक से यह स्पष्ट होता है कि, महिलाओं के पास भी श्राद्ध या पिंडदान करने का अधिकार है. लेकिन इसके लिए कुछ विशेष परिस्थितियां भी बताई गई हैं. लेकिन तर्पण या श्राद्ध के लिए पहले पुरुष को ही वरीयता दी जाती है. माता सीता ने भी किया था ससुर का पिंडदान वाल्मीकि रामायण के अनुसार, माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. इसके बाद राजा दशरथ की आत्मा को शांति मिली थी. वनवास के दौरान जब श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता पितृपक्ष के दौरान राजा दशरथ के पिंडदान के लिए गया धाम पहुंचे. लेकिन कुछ समय के लिए श्राद्ध की सामग्री लेने के लिए प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी नगर की ओर गए. इस बीच वहां आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का शुभ समय समाप्त होने वाला है. तब राजा दशरथ की आत्मा ने माता सीता को दर्शन दिए और उनसे पिंडदान करने को कहा. राजा दशरथ की इच्छा का पालन करते हुए माता सीता ने तब फालगु नदी, केतकी के फूल, गाय और वट वृक्ष को साक्षी मानकर बालू की पिंडी बनाकर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. इस तरह से शास्त्रों में पुत्र की अनुपस्थिति में पुत्रवधू को पिंडदान या श्राद्ध का अधिकार प्राप्त हुआ. panditjti 9685126801 पंडित सुनील नाड़ेकर भारद्वाज

बुधवार, 25 सितंबर 2024

सामुहिक् तर्पण पिंडदान सामग्री लिस्ट ***

* सामुहिक् तर्पण पिंडदान सामग्री लिस्ट *** *****पंडितजी मो.9685126801****** मार्गदर्शन :- श्री मदनजी सातपुते महाराज (,अमरावती घाट). मो. 7470366653 स्थान : बलेगाव ताप्ती घाट तह मुलताई बैतूल mp समय तिथि : सुबह् 8बजे से 12बजे तक 🪔 नवमी श्राद्ध गुरुवार 26 सितम्बर 2024 🪔 सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध 2 अक्टूम्बर 2024 1. पलाश के पत्ते की दो पत्तल या डिस्पोजल पत्तल ,2 गिलास डिस्पोजल , 1 ताम्बे का लोटा , आटा भिगोने के लिए थाली 1, जौ का आटा 1पाव् या गेहूं का 2. दूध ,दही, शहद , 3. उड़द मुंग के 5 बड़े फीके बिना मिर्च बिना नमक के, बिना लहसुन प्याज़ के ! 4. एक जोड़ी कपड़े या धोति बदलने के लिए टॉवल 5. जनेऊ यज्ञोपवित 1जोडी 6. काश एवं काश की कुश पवित्री अंगूठी बनाकर लाये ! 7. चंदन , सफ़ेद फुल ,काले तिल जोौ ,चावल अक्षत 100 ग्राम , गुड़ सभी थोड़ा थोड़ा लेवे , धुपबत्ति , माचिस , आटे का दीपक, कपास बत्ती, सिक्के 5 , 8. हवन पुड़ा 50.gm, हवन की लकड़ी , घी .50ml ,कपूर 9. दक्षिणा स्वेच्छानुसार ___श्री प्रज्ञा सेवा केंद्र एवं गायत्री प्रज्ञा मंडल अमरावती घाट के तत्वावधान में __ सम्पर्क् मार्गदर्शन :- श्री श्रावण जी चरपे ,श्री चंद्रभान जी वाडबुदे , श्री दयाराम जी सातपुते , श्री प्रकाश जी (बारमाशे टेलर् ) ,श्री मोरेश्वर जी सातपुते,अमरावती घाट का

मंगलवार, 17 सितंबर 2024

काली हल्दी के चमत्कारी उपाय

धन के लिए हल्दी का उपयोग कैसे करें? हल्दी के इस उपाय से व्यापार में होगी उन्नति अगर व्यापार में उन्नति नहीं हो रही है लगातार घाटा हो रहा है तो काली हल्दी और केसर में पानी मिलाकर अच्छे से घोल तैयार कर लें। इसके बाद तिजोरी पर स्वास्तिक बनाएं और इसकी नियमित रूप से पूजा करें। ऐसा करने से सभी समस्याएं दूर होंगी और बिजनेस में उन्नति होगी।

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

पार्ट टाइम वर्क के लिये लड़के लड़कियों कि जरूरत है !

https://wa.me/9685126801?text=workfromhome यदि कोई बेरोजगार या महिला पुरुष पार्ट टाइम काम मोबाईल से करना चाहता है तो सम्पर्क करे ट्रेनिंग फ्री दी जाएगी !

पितृ पक्ष विशेष तिथिया 2024 समाचार

पितृ पक्ष 2024 की महत्वपूर्ण तिथियां: पितृ पक्ष 18 सितंबर को शुरू होगा और 2 अक्टूबर को समाप्त होगा। यहां 2024 में श्राद्ध की प्रमुख तिथियां हैं: प्रतिपदा श्राद्ध: 18 सितंबर। पंचमी श्राद्ध: 22 सितंबर। - - क्या बेटिया श्राद्ध कर सकती है ? -- यदि पत्नी भी साथ न हो तो उसका भाई श्राद्ध कर सकता है। यदि कोई भी उपस्थित न हो तो सपिण्ड भी श्राद्ध कर सकते हैं। दामाद और पुत्री भी श्राद्ध कर सकते हैं , किन्तु यदि कोई भी न हो तो राजा को चाहिए कि मृतक के धन से ही उसका श्राद्ध करें, क्योंकि उसे सबका बान्धव कहा गया है।

गणेशजी मूर्ति विसर्जन पितृपक्ष के पहले 17सि.2024 कों कर देवे

सूर्या स्त के पहले तक करें विसर्जन पंडित शुक्ला ने कहा कि “ हवन करने के बाद पूरे दिन भर गणेश जी का विसर्जन सूर्यास्त के पहले तक किसी भी समय किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में विद्वानो व ज्योतिषाचार्यो का कथन है कि “भद्रा और पंचक ही केवल विघ्न नहीं हैं। व्यतिपात, कक्रजादि योग, मासदग्ध तिथियाँ, मासशून्य तिथियाँ, ग्रहण आदि अनेक चीजें हैं वो सब भी विघ्न ही हैं।” लेकिन भगवान गणेश तो विघ्नहर्ता स्वयं हैं इसलिए उन्हें अपने किसी कार्य के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं है। न स्थापना के समय न विसर्जन के समय। विसर्जन के लिए अलग से मुहूर्त देखने की अनिवार्यता नही होती है! SCN NEWS के रिपोर्ट अनुसार गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में दिये गये निर्देशों के अनुसार किया जाना चाहिये। पितृपक्ष में गणपति की प्रतिमा का विसर्जन नहीं होता। अनंत चतुर्दशी के दिन जब हवन-पूजन हो जाता है तो उसके ठीक बाद प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाना चाहिये। बाद में विसर्जन से अनिष्ट की आशंका होती है। विसर्जन जुलूस में भी सादगी और गरिमा होनी चाहिये ताकि यह पता चल सके कि हम अपने अराध्‍य को विसर्जन के लिये ले जा रहे हैं। ये विचार आज कलेक्ट्रेट में आयोजित पत्रकार वार्ता में संतों ने व्यक्त किये। ज्ञात हो कि संत जनों और जिला प्रशासन ने गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन शास्‍त्र सम्‍मत विधि अनुसार एक ही दिन यानी अनंत चतुर्दशी पर ही करने की मुहिम शुरू की है। इसी मुहिम के अंतर्गत आज बुधवार को कलेक्टर दीपक सक्सेना की पहल पर कलेक्ट्रेट में सभी संतजनों की पत्रकारवार्ता आयोजित की गई। पत्रकार वार्ता में महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद जी महाराज, स्वामी नरसिंहदास जी, स्वामी चैतन्यानंद जी, पंडित वासुदेव जी शास्त्री, स्वामी अशोका नंद, पंडित रोहित दुबे, स्वामी राजारामाचार्य जी, श्री मुन्ना पांडे एवं सर्वधर्म समन्‍वयक श्री शरद काबरा मौजूद थे। पत्रकार वार्ता में कलेक्‍टर श्री दीपक सक्‍सेना एवं अपर कलेक्‍टर श्री नाथूराम गौंड भी उपस्थित थे। पत्रकार वार्ता को सम्बोधित करते हुये महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानन्द गिरी जी ने कहा कि गणेश विसर्जन का विधान अनंत चतुर्दशी के दिन ही है। अनंत चतुर्दशी पर ही विसर्जन करना शास्‍त्र सम्‍मत माना गया है, इससे सुख समृद्धि आती है। इसके बाद किसी और दिन विसर्जन करने से अनिष्ट की आशंका होती है। उन्होंने आम जनता और गणेश उत्सव समितियों से भी आग्रह है की वे एक ही दिन प्रतिमाओं का विसर्जन करें। अध्‍यक्ष नगर पंडित सभा आचार्य पं. वासुदेव शास्त्री ने कहा कि 17 सितम्बर को अनंत चतुर्दशी है और इसी दिन गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन होना चाहिए। उन्होंने बताया कि निर्णय सिंधु ग्रंथ में इस बात का उल्लेख है कि अनंत चतुर्दशी के दिन ही विसर्जन का प्रावधान है। भक्तिधाम ग्‍वारीघाट के स्वामी अशोकानंद ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि जो विधान है सभी को उसी के अनुसार कार्य किये जाने चाहिए। ज्‍योतिष तीर्थ पं. रोहित दुबे ने कहा कि शास्त्रों के मुताबिक गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन दसवें दिन ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हवन के बाद प्रतिमा रखने का कोई औचित्य नहीं है। पितृपक्ष में विसर्जन परिवार एवं समाज के लिये हानिकारक माना जाता है। विश्व हिंदू परिषद के श्री मुन्ना पांडे ने कहा कि जब प्रतिमाओं की स्थापना एक ही दिन की जाती है तो फिर उनक विसर्जन् अलग-अलग दिन समाजहित में नहीं है। ब्रहम्चारी स्‍वामी चैतन्यानन्द ने कलेक्टर दीपक सक्सेना द्वारा शास्त्र सम्मत विधि से गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन के की गई पहल को सार्थक बताते हुये कहा कि दसवें दिन ही विसर्जन होना चाहिए। डॉ स्वामी नरसिंहदास ने पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुये कहा कि नियमों से पूजन और विसर्जन करने पर ही हमारी पूजा सफल होगी और देवता प्रसन्न होंगे। पत्रकार वार्ता में सभी संतों से जब पूछा गया कि गणेश प्रतिमाओं के लिए जब यह विधान है तो देवी प्रतिमाओं का विसर्जन आखिर शरद पूर्णिमा तक क्यों होता है। इस पर सभी संतों ने एक स्वर में कहा कि यही नियम देवी प्रतिमाओं के लिये भी है। जैसे ही प्रतिमाओं के समक्ष अंतिम दिन हवन किया जाता है उसके बाद विसर्जन का प्रावधान है। दशहरा पर जुलूस के बाद देवी प्रतिमाओं का विसर्जन कर दिया जाना चाहिए।

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