सहस्त्ररूपा सर्वव्यापी लक्ष्मी साधना विधि
प्रत्येक वर्ष दीपावली पर सर्वत्र विद्यमान, सर्व सुख प्रदान करने वाली माता महालक्ष्मी जी की पूजन करने की विधि बताई जाती है।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी हम चाहते हैं कि आप सभी मित्र अपने-अपने घरों या दुकानों में सपरिवार सहस्त्ररूपा सर्वव्यापी लक्ष्मी साधना पूजा को कर मां लक्ष्मी को अपने घर में स्थायी रूप से प्रतिष्ठित करें।
यह पूजन समस्त ग्रहों की महादशा या अन्तर्दशा के लिए लाभप्रद होता है। वैसे जिनकी शुक्र की दशा चल रही हो वे लोग इस पूजन को ज़रूर करें।
इस विधि से माता लक्ष्मी की पूजा करने से सहस्त्ररुपा सर्वव्यापी लक्ष्मी जी सिद्ध होती हैं। इस वर्ष इस पूजा को सिद्ध करने का समय दीपावली को अपरान्ह 2.00 से 4.00 के मध्य या रात्रि तथा 11.30 से 02.57 के मध्य है।
जो भक्तजन सहस्त्र रुपा सर्वव्यापी लक्ष्मी पूजन करते हैं उनके आमदनी के नए-नए लक्षण बनने लगते हैं। आर्थिक उन्नति,पारिवारिक समृद्धि,व्यापार में बृद्धि,यश, प्रसिद्धि बढ़ने लगती है। दरिद्रता और कर्ज समाप्त होने लगता है। पति-पत्नी के बीच कलह समाप्त होने लगती है। सभी प्रकार के मनोवांछित फल प्राप्त होने लगते हैं।
लक्ष्मी का तात्पर्य केवल धन ही नहीं होता बल्कि जीवन की समस्त परिस्थितियों की अनुकूलता ही लक्ष्मी कही जाती हैं।
सहस्त्र रुपा सर्वव्यापी लक्ष्मी का अर्थ 1-धन लक्ष्मी, 2-स्वास्थ्य लक्ष्मी, 3-पराक्रम लक्ष्मी, 4-सुख लक्ष्मी, 5-संतान लक्ष्मी, 6-शत्रु निवारण लक्ष्मी, 7-आनंद लक्ष्मी, 8- दीर्घायु लक्ष्मी, 9-भाग्य लक्ष्मी, 10-पत्नी लक्ष्मी, 11-राज्य सम्मान लक्ष्मी, 12- वाहन लक्ष्मी, 13-सौभाग्य लक्ष्मी, 14-पौत्र लक्ष्मी 15-राधेय लक्ष्मी होता है।
इस पूजन को विशेष रूप से अमावस्या को अर्ध रात्रि में किया जाना अत्यंत शुभ फलदायी होता है। प्रत्येक दीपावली के दिन अमावस्या होती है अतः इसी दिन यह पूजा करना लाभप्रद होता है।
सामग्री
1.श्री यंत्र (तांबा,चांदी या सोने का) एक
2.तिल का तेल 500 ग्राम
3.मिट्टी की 11 दीपमालिका
4. रुई बत्ती लंबी वाली 22
5.केशर
6.गुलाब या चमेली या कमल के 108 फूल
7.दूध ,दही,घी,शहद और गंगा जल
8.सफेद रुमाल
9.साबुत कमल गट्टा दाना 108, किसी तांबे के कटोरे में पिघला घी डाल कर रखें।
10.कमल गट्टे की माला एक
11.आम की लकड़ी डेढ़ किलो
12.पीली धोती,पीला तौलिया या गमछा
13.तांबा या पीतल या चांदी की बड़ी थाल (जिसमें उपरोक्त समान आ सके)
14.फूल या पीतल का भगौना या अन्य पात्र
नोट- इस पूजा में किसी भी प्रकार का स्टील या लोहे का बर्तन का प्रयोग वर्जित है।
पूजन विधि:-
सर्वप्रथम स्नान करके पीला वस्त्र धारण कर उपरोक्त समस्त सामान पूजा स्थल पर अपने पास रख लें और पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ जाएं।
अब अपने सामने थाल रखें। उस थाल के ठीक बीच में श्री यंत्र को रख दें अब श्री यंत्र के चारों तरफ 11 तिल के तेल के दीपक की मालिका या सिर्फ 13 दीपक ऐसे रखें की दीपक की लौ साधक की ओर रहें।
अब दीपक को थाली के बाहर कर लें। थाल के केंद्र में स्वस्तिक का निशान बनावें। श्री यंत्र पर 11 बिंदी लगाएं। ग्यारहवी बिंदी यंत्र के केंद्र में थोड़ा बड़ी लगाएं। बिंदी लगा कर थाल के केंद्र पर रख दें। अब गणपति एवं विष्णु जी का बारी-बारी ध्यान करके हाथ में जल अक्षत पुष्प लेकर ॐ श्रीं श्रीं सहस्त्र रुपा सर्व व्यापी लक्ष्मी जी का पूजन करने हेतु संकल्प लें एवं हाथ की सामग्री पृथ्वी पर गिरा दें। अब थाल में रखे 11 दीपक बाहर निकालें।
अब श्री यंत्र को किसी पीतल या फूल के पात्र में क्रमशः दूध, दही, घी, शहद, शक्कर से स्नान कर कर फिर गंगा जल से स्नान कराकर यंत्र को सफेद कपड़े से अच्छी तरह पोंछ लें। स्नान कराने पर जो सामग्री फूल य पीतल के पात्र में इकट्ठा हुई वही सामग्री पूजन के पश्चात प्रसाद रूप में ग्रहण की जाएगी। प्रसाद हेतु मिश्री डालकर खीर बनाकर अर्पित कर सकते हैं।
अब थाल के बीच में पुनः स्वस्तिक का निशान बना कर श्री यंत्र को स्थापित करके पहले की तरह उस पर 11 बिंदी केशर की लगाएं। तत्पश्चात धूप बत्ती या अगरबत्ती प्रज्वलित करें एवं यंत्र के चारों तरफ पहले की तरह उन दीपक को लगा कर कमल गट्टे की माला से निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए एक -एक फूल बारी-बारी से प्रत्येक मंत्र के पश्चात स्वाहा बोलते हुए श्री यंत्र पर 108 पुष्पों को रखते जाएं।
मंत्र है || ॐ श्रीं-श्रीं सहस्त्र-रुपा सर्वव्यापी लक्ष्मी सिद्धये श्रीं-श्रीं ॐ नमः
अब हवन पात्र में आम की लकड़ी रख कर अग्नि प्रज्ज्वलित कर कमल गट्टे की माला से पुनः उपरोक्त मंत्र एवं स्वाहा के उच्चारण के साथ एक एक कमल गट्टे के दाने को घी सहित किसी आम्र-पल्लव या तांबे के चम्मच से थोड़ा-थोड़ा घी सहित हवन कुण्ड में डालते जाएं। अंतिम मंत्र के साथ कटोरे का समस्त घी अग्नि में डाल दें। अब आपकी पूजा सम्पन्न हुई। मुख्यतःलक्ष्मी गणेश जी की आरती घी के दीपक से कर प्रसाद को मां लक्ष्मी एवं अग्नि देव को ग्रहण कराएं। तत्पश्चात अब घर के सदस्य आरती लेकर उस प्रसाद को ग्रहण करें। इस पूजा में आप सफेद मिष्ठान भी चढ़ा सकते हैं।
अब आपकी पूजा पूर्णरूप से सम्पन्न हुई। पूजा के पश्चात रात्रि 4.30 बजे तक सोना नहीं चाहिए। पूजा के पश्चात भजन कीर्तन कर या सुन सकते हैं। सुबह आप श्री यंत्र को पूजा में या आलमारी के लॉकर में या दुकान में या कहीं भी पवित्र स्थान पर लाल कपड़े में लपेट कर रख सकते हैं।
यह सभी सुखों को प्रदान करने वाली महालक्ष्मी जी की अत्यंत प्राचीन और दुर्लभ सिद्ध मंत्र साधना है।