राममंदिर और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 22 जनवरी का मुहूर्त सर्वोत्तम है। जब भी पहले आनन-फानन मुहूर्त दिया गया, उसमें कुछ कमी थी, इसी कारण मंदिर तोड़े गए।
इसलिए सभी बातों को ध्यान में रखकर 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त दिया गया है। इसमें लग्नस्थ गुरु की दृष्टि पंचम, सप्तम एवं नवम भाव पर होने से मुहूर्त उत्तम है। मकर का सूर्य होने के कारण पौषमास का दोष समाप्त हो जाता है।
श्री गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा ने कहा कि देशभर से आए सवालों का 25 बिंदुओं में समाधान किया गया है। कोई भी धार्मिक विवाद होने पर इसी सभा का निर्णय अंतिम होता है। शिलान्यास व लोकार्पण का मुहूर्त देने वाले पं. गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ इस सभा के परीक्षाधिकारी मंत्री भी हैं। उनका कहना है कि देवमंदिर की प्रतिष्ठा दो तरह से होती है। एक संपूर्ण मंदिर बनने पर। दूसरा मंदिर में कुछ काम शेष रहने पर भी।
विज्ञापनRam Mandir: प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त सर्वोत्तम... हर तारीख और दोष पर विचार के बाद तय हुई 22 जनवरी
अमर उजाला नेटवर्क, अयोध्या Published by: शाहरुख खान Updated Sun, 14 Jan 2024 09:12 AM IST
सार
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा व मंदिर के लोकार्पण पर विवाद के बीच श्री गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा ने कहा कि इसमें कोई दोष नहीं है। प्राण प्रतिष्ठा पूरी तरह दोष रहित है। 22 जनवरी का मुहूर्त सर्वोत्तम है, क्योंकि 2026 तक प्राण प्रतिष्ठा और लोकार्पण का शुभ मुहूर्त नहीं मिल रहा था। Ram Mandir - फोटो : सोशल मीडिया
राममंदिर और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 22 जनवरी का मुहूर्त सर्वोत्तम है। जब भी पहले आनन-फानन मुहूर्त दिया गया, उसमें कुछ कमी थी, इसी कारण मंदिर तोड़े गए।
इसलिए सभी बातों को ध्यान में रखकर 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त दिया गया है। इसमें लग्नस्थ गुरु की दृष्टि पंचम, सप्तम एवं नवम भाव पर होने से मुहूर्त उत्तम है। मकर का सूर्य होने के कारण पौषमास का दोष समाप्त हो जाता है।
श्री गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा ने कहा कि देशभर से आए सवालों का 25 बिंदुओं में समाधान किया गया है। कोई भी धार्मिक विवाद होने पर इसी सभा का निर्णय अंतिम होता है। शिलान्यास व लोकार्पण का मुहूर्त देने वाले पं. गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ इस सभा के परीक्षाधिकारी मंत्री भी हैं। उनका कहना है कि देवमंदिर की प्रतिष्ठा दो तरह से होती है। एक संपूर्ण मंदिर बनने पर। दूसरा मंदिर में कुछ काम शेष रहने पर भी।
संपूर्ण मंदिर बन जाने पर गर्भगृह में देव प्रतिष्ठा होने के बाद मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा संन्यासी करते हैं। गृहस्थ द्वारा कलश प्रतिष्ठा होने पर वंशक्षय होता है। मंदिर का पूर्ण निर्माण हो जाने पर प्रतिष्ठा के साथ मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा होती है। जहां मंदिर पूर्ण नहीं बना रहता है, वहां देव प्रतिष्ठा के बाद मंदिर का पूर्ण निर्माण होने पर किसी शुभ दिन में उत्तम मुहूर्त में मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा होती है।
गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा ने देशभर से आए सवालों पर यह दिया जवाब- 22 जनवरी से विजयादशमी के दिन तक गुणवत्तर लग्न नहीं मिलता। गुरु वक्री होने के कारण दुर्बल हैं।
- बलि प्रतिपदा को मंगलवार है। इस तिथि में गृह प्रवेश निषिद्ध है। अनुराधा नक्षत्र में घटचक्र की शुद्धि नहीं है। अग्निबाण होने से मंदिर में मूर्तिप्रतिष्ठा होने पर आग से हानि की आशंका है।
- 25 को मृत्युबाण है। इसमें प्रतिष्ठा से लोगों की मृत्यु होती है।
- माघ व फाल्गुन में बाण शुद्धि नहीं मिलती तो कहीं पक्षशुद्धि नहीं मिलती तथा कहीं तिथि की शुद्धि नहीं मिलती है। माघ शुक्ल में गुरु उच्चांश का नहीं है।
- 14 मार्च से खरमास है। इस काल में शुभ कार्य नहीं होते हैं।
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