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श्री गणेश चतुर्थी
*गणेश चतुर्थी पूजन विधि एवं प्रतिमाओं की स्थापना का शुभ मुहूर्त - 2021*
इस बार गणेश चतुर्थी 10 सितंबर, शुक्रवार को है. पूजा एवं गणपति स्थापना का शुभ मुहर्त दोपहर 12:17 बजे से लेकर रात 10 बजे तक रहेगा.
गाय के गोबर से गणेश जी की शिव लिंग की तरह गणेश की गोलाकार प्रतिमा बनांकर धूप में सुखा लें व उनकी ही स्थापना करें।
या
सुपारी की गणेश प्रतीक प्रतिमा स्थापित कर सकते हैं।
या
मिट्टी व प्राकृतिक रँग व सामान से बनी प्रतिमा उपयोग में लें।
या
धातु की बनी गणेश प्रतिमा स्थापित करें, विसर्जन के दिन जल छिड़कर विदा कर दें और बॉक्स में बन्द कर सुरक्षित रख लें, पुनः अगले साल उस प्रतिमा को धोकर व पॉलिश करके पुनः स्थापित नहला धुलाकर कर लें, विसर्जन के बाद पुनः बॉक्स में सुरक्षित रख लें।
अप्राकृतिक सामान से प्लास्टिक ऑफ पेरिस से बनी गणेश प्रतिमा न खरीदें, जो विसर्जन के बाद जल में घुलती नहीं। प्रदूषण करती है।
आज के दिन के साथ ही दस दिवसीय गणेशोत्सव शुरू हो जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है। इसी तिथि पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी पर बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता भगवान गणेश की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है
गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा दोपहर के समय करना शुभ माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। *गणेश चतुर्थी पर मध्याह्न काल में अभिजित मुहूर्त के संयोग पर गणेश भगवान की मूर्ति की स्थापना करना शुभ रहेगा। ।* इसके अलावा पूरे दिन शुभ संयोग होने से सुविधा अनुसार किसी भी शुभ लग्न या चौघड़िया मुहूर्त में गणेश जी की स्थापना कर सकते हैं।
सभी पर्व सामूहिक रूप से मनाये जाते हैं, परन्तु पूजन के लिए किसी प्रतिनिधि को पूजा चौकी के पास बिठाना पड़ता है, इसी परिप्रेक्ष्य में पास बिठाये हुए प्रतिनिधि को षट्कर्म कराया जाए, अन्य उपस्थित परिजनों का सामूहिक सिंचन से भी काम चलाया जा सकता है। फिर सर्वदेव नमस्कार, स्वस्तिवाचन आदि क्रम सामान्य प्रकरण से पूरे कर लिये जाएँ। तत्पश्चात् श्रीगणेश एवं लक्ष्मी के आवाहन- पूजन प्रतिनिधि से कराए जाएँ।
👉🏻॥ *गणेश आवाहन*॥
गणेश जी को विघ्ननाशक और बुद्धि- विवेक का देवता माना गया है।
*ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि।*
*तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥* - गु०गा०
*ॐ विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय,*
*लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।*
*नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय,*
*गौरीसुताय गणनाथ! नमो नमस्ते॥*
*ॐ श्री गणेशाय नमः॥ आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।*
👉🏻॥ *दीपयज्ञ से गणेशोत्सव*॥
दीप, ज्ञान के- प्रकाश के प्रतीक हैं। ज्ञान और प्रकाश के वातावरण में ही लक्ष्मी बढ़ती है, फलती- फूलती है। अज्ञान और अन्धकार में वह नष्ट हो जाती है, इसलिए प्रकाश और ज्ञान के प्रतीक साधन दीप जलाये जाते हैं।
एक थाल में कम से कम ५ या ११ घृत- दीप जलाकर उसका निम्न मन्त्र से विधिवत् पूजन करें। तत्पश्चात् गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में जितने चाहें, उतने दीप तेल से जलाकर विभिन्न स्थानों पर रखें।
*ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा। सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा। अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा। सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा। ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा*॥ ३.९
सभी के हाथ मे अक्षत पुष्प देकर नेत्र बन्द कर भावनात्मक आहुति देने को बोलिये।
*गायत्री मन्त्र*- ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।
*गणेश गायत्री मन्त्र*- ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।
*दुर्गा गायत्री मन्त्र*- गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।
*रुद्र गायत्री मन्त्र*- ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्
*चन्द्र गायत्री मन्त्र*- ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि, तन्न: चन्द्र: प्रचोदयात्।
*महामृत्युंजय मन्त्र*- ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
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*||गणेश जी की आरती||*
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी। माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी॥
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अन्धे को आँख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
*||शान्तिपाठ||*
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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