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सोमवार, 15 जनवरी 2024

प्राण प्रतिष्ठा मुहूर्त भ्रम ऐसे होगा दूर




राममंदिर और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 22 जनवरी का मुहूर्त सर्वोत्तम है। जब भी पहले आनन-फानन मुहूर्त दिया गया, उसमें कुछ कमी थी, इसी कारण मंदिर तोड़े गए।

इसलिए सभी बातों को ध्यान में रखकर 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त दिया गया है। इसमें लग्नस्थ गुरु की दृष्टि पंचम, सप्तम एवं नवम भाव पर होने से मुहूर्त उत्तम है। मकर का सूर्य होने के कारण पौषमास का दोष समाप्त हो जाता है।

श्री गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा ने कहा कि देशभर से आए सवालों का 25 बिंदुओं में समाधान किया गया है। कोई भी धार्मिक विवाद होने पर इसी सभा का निर्णय अंतिम होता है। शिलान्यास व लोकार्पण का मुहूर्त देने वाले पं. गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ इस सभा के परीक्षाधिकारी मंत्री भी हैं। उनका कहना है कि देवमंदिर की प्रतिष्ठा दो तरह से होती है। एक संपूर्ण मंदिर बनने पर। दूसरा मंदिर में कुछ काम शेष रहने पर भी।


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Ram Mandir: प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त सर्वोत्तम... हर तारीख और दोष पर विचार के बाद तय हुई 22 जनवरी

अमर उजाला नेटवर्क, अयोध्या Published by: शाहरुख खान Updated Sun, 14 Jan 2024 09:12 AM IST
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सार

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा व मंदिर के लोकार्पण पर विवाद के बीच श्री गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा ने कहा कि इसमें कोई दोष नहीं है। प्राण प्रतिष्ठा पूरी तरह दोष रहित है। 22 जनवरी का मुहूर्त सर्वोत्तम है, क्योंकि 2026 तक प्राण प्रतिष्ठा और लोकार्पण का शुभ मुहूर्त नहीं मिल रहा था। 
Ayodhya Ram Mandir Best Auspicious Time For Pran Pratishtha After considering every date and defect 22 January
Ram Mandir - फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
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राममंदिर और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 22 जनवरी का मुहूर्त सर्वोत्तम है। जब भी पहले आनन-फानन मुहूर्त दिया गया, उसमें कुछ कमी थी, इसी कारण मंदिर तोड़े गए। 


इसलिए सभी बातों को ध्यान में रखकर 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त दिया गया है। इसमें लग्नस्थ गुरु की दृष्टि पंचम, सप्तम एवं नवम भाव पर होने से मुहूर्त उत्तम है। मकर का सूर्य होने के कारण पौषमास का दोष समाप्त हो जाता है।


श्री गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा ने कहा कि देशभर से आए सवालों का 25 बिंदुओं में समाधान किया गया है। कोई भी धार्मिक विवाद होने पर इसी सभा का निर्णय अंतिम होता है। शिलान्यास व लोकार्पण का मुहूर्त देने वाले पं. गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ इस सभा के परीक्षाधिकारी मंत्री भी हैं। उनका कहना है कि देवमंदिर की प्रतिष्ठा दो तरह से होती है। एक संपूर्ण मंदिर बनने पर। दूसरा मंदिर में कुछ काम शेष रहने पर भी। 

संपूर्ण मंदिर बन जाने पर गर्भगृह में देव प्रतिष्ठा होने के बाद मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा संन्यासी करते हैं। गृहस्थ द्वारा कलश प्रतिष्ठा होने पर वंशक्षय होता है। मंदिर का पूर्ण निर्माण हो जाने पर प्रतिष्ठा के साथ मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा होती है। जहां मंदिर पूर्ण नहीं बना रहता है, वहां देव प्रतिष्ठा के बाद मंदिर का पूर्ण निर्माण होने पर किसी शुभ दिन में उत्तम मुहूर्त में मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा होती है।  

गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा ने देशभर से आए सवालों पर यह दिया जवाब
  • 22 जनवरी से विजयादशमी के दिन तक गुणवत्तर लग्न नहीं मिलता। गुरु वक्री होने के कारण दुर्बल हैं।
  • बलि प्रतिपदा को मंगलवार है। इस तिथि में गृह प्रवेश निषिद्ध है। अनुराधा नक्षत्र में घटचक्र की शुद्धि नहीं है। अग्निबाण होने से मंदिर में मूर्तिप्रतिष्ठा होने पर आग से हानि की आशंका है।
  • 25 को मृत्युबाण है। इसमें प्रतिष्ठा से लोगों की मृत्यु होती है।
  •  माघ व फाल्गुन में बाण शुद्धि नहीं मिलती तो कहीं पक्षशुद्धि नहीं मिलती तथा कहीं तिथि की शुद्धि नहीं मिलती है। माघ शुक्ल में गुरु उच्चांश का नहीं है।
  • 14 मार्च से खरमास है। इस काल में शुभ कार्य नहीं होते हैं।
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रामायण के प्रमुख पात्रों की जानकारी















🌹🚩🌹

आप सभी से अनुरोध है कि रामायण के प्रमुख पात्रों की जानकारी अपने बच्चों को अवश्य दें, क्योंकि आज के समय में रामायण का पढ़ना पुराने समय की बात हो गई है। इसलिए बच्चे रामायण की बातें भूलते जा रहे हैं।


ये जानकारी हमने मात्र इसलिए साझा की है जिससे आप रामायण को आसानी से और अच्छे से समझ सकें।


◆ दशरथ – रघुवंशी राजा इन्द्र के मित्र कोशल प्रदेश के राजा तथा राजधानी एवं निवास अयोध्या।


◆ कौशल्या – दशरथ की बङी रानी, राम की माता।


◆ सुमित्रा - दशरथ की मझली रानी, लक्ष्मण तथा शत्रुधन की माता।


◆ कैकयी - दशरथ की छोटी रानी, भरत की माता।


◆ सीता – जनकपुत्री, राम की पत्नी।


◆ उर्मिला – जनकपुत्री, लक्ष्मण की पत्नी।


◆ मांडवी – जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, भरत की पत्नी।


◆ श्रुतकीर्ति - जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, शत्रुध्न की पत्नी।


◆ राम – दशरथ तथा कौशल्या के पुत्र, सीता के पति।


◆ लक्ष्मण - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, उर्मिला के पति।


◆ भरत – दशरथ तथा कैकयी के पुत्र, मांडवी के पति।


◆ शत्रुध्न - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, श्रुतकीर्ति के पति, मथुरा के राजा लवणासुर के संहारक।


◆ शान्ता – दशरथ की पुत्री, राम बहन।


◆ बाली – किश्कंधा (पंपापुर) का राजा, रावण का मित्र तथा साढ़ू, साठ हजार हाथीयों का बल।


◆ सुग्रीव – बाली का छोटा भाई, जिनकी हनुमान जी ने मित्रता करवाई।


◆ तारा – बाली की पत्नी, अंगद की माता, पंचकन्याओं में स्थान।


◆ रुमा – सुग्रीव की पत्नी, सुषेण वैध की बेटी।


◆ अंगद – बाली तथा तारा का पुत्र।


◆ रावण – ऋषि पुलस्त्य का पौत्र, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा (केकसी) का पुत्र।


◆ कुंभकर्ण – रावण तथा कुंभिनसी का भाई, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा (केकसी) का पुत्र।


◆ कुंभिनसी – रावण तथा कूंभकर्ण की बहन, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा (केकसी) की पुत्री।


◆ विश्रवा - ऋषि पुलस्त्य का पुत्र, पुष्पोत्कटा-राका-मालिनी के पति।


◆ विभीषण – विश्रवा तथा राका का पुत्र, राम का भक्त।


◆ पुष्पोत्कटा (केकसी) – विश्रवा की पत्नी, रावण, कुंभकर्ण तथा कुंभिनसी की माता।


◆ राका – विश्रवा की पत्नी, विभीषण की माता।


◆ मालिनी - विश्रवा की तीसरी पत्नी, खर-दूषण त्रिसरा तथा शूर्पणखा की माता।


◆ त्रिसरा – विश्रवा तथा मालिनी का पुत्र, खर-दूषण का भाई एवं सेनापति।


◆ शूर्पणखा - विश्रवा तथा मालिनी की पुत्री, खर-दूसन एवं त्रिसरा की बहन, विंध्य क्षेत्र में निवास।


◆ मंदोदरी– रावण की पत्नी, तारा की बहन, पंचकन्याओ मे स्थान।


◆ मेघनाद – रावण का पुत्र इंद्रजीत, लक्ष्मण द्वारा वध।


◆ दधिमुख – सुग्रीव के मामा।


◆ ताड़का – राक्षसी, मिथिला के वनों में निवास, राम द्वारा वध।


◆ मारीची – ताड़का का पुत्र, राम द्वारा वध (स्वर्ण मर्ग के रूप मे )।


◆ सुबाहू – मारीची का साथी राक्षस, राम द्वारा वध।


◆ सुरसा – सर्पो की माता।


◆ त्रिजटा – अशोक वाटिका निवासिनी राक्षसी, रामभक्त, सीता से अनुराग।


◆ प्रहस्त – रावण का सेनापति, राम-रावण युद्ध में मृत्यु।


◆ विराध – दंडक वन मे निवास, राम लक्ष्मण द्वारा मिलकर वध।


◆ शंभासुर – राक्षस, इन्द्र द्वारा वध, इसी से युद्ध करते समय कैकेई ने दशरथ को बचाया था तथा दशरथ ने वरदान देने को कहा।


◆ सिंहिका – लंका के निकट रहने वाली राक्षसी, छाया को पकड़कर खाती थी।


◆ कबंद – दण्डक वन का दैत्य, इन्द्र के प्रहार से इसका सर धड़ में घुस गया, बाहें बहुत लम्बी थी, राम-लक्ष्मण को पकड़ा, राम- लक्ष्मण ने गङ्ढा खोद कर उसमें गा ड़ दिया।


◆ जामबंत – रीछ थे, रीछ सेना के सेनापति।


◆ नल – सुग्रीव की सेना का वानरवीर।


◆ नील – सुग्रीव का सेनापति जिसके स्पर्श से पत्थर पानी पर तैरते थे, सेतुबंध की रचना की थी।


◆ नल और नील – सुग्रीव सेना में इंजीनियर व राम सेतु निर्माण मे महान योगदान। (विश्व के प्रथम इंटरनेशनल हाईवे “रामसेतु” के आर्किटेक्ट इंजीनियर)


◆ शबरी – अस्पृश्य जाती की रामभक्त, मतंग ऋषि के आश्रम में राम-लक्ष्मण-सीता का आतिथ्य सत्कार।


◆ संपाती – जटायु का बड़ा भाई, वानरों को सीता का पता बताया।


◆ जटायु – रामभक्त पक्षी, रावण द्वारा वध, राम द्वारा अंतिम संस्कार।


◆ गृह – श्रंगवेरपुर के निषादों का राजा, राम का स्वागत किया था।


◆ हनुमान – पवन के पुत्र, राम भक्त, सुग्रीव के मित्र।


◆ सुषेण वैध – सुग्रीव के ससुर।


◆ केवट – नाविक, राम-लक्ष्मण-सीता को गंगा पार करायी।


◆ शुक्र-सारण – रावण के मंत्री जो बंदर बनकर राम की सेना का भेद जानने गये।


◆ अगस्त्य – पहले आर्य ऋषि जिन्होंने विन्ध्याचल पर्वत पार किया था तथा दक्षिण भारत गये।


◆ गौतम – तपस्वी ऋषि, अहल्या के पति, आश्रम मिथिला के निकट।


◆ अहल्या - गौतम ऋषि की पत्नी, इन्द्र द्वारा छलित तथा पति द्वारा शापित, राम ने शाप मुक्त किया, पंचकन्याओं में स्थान।


◆ ऋण्यश्रंग – ऋषि जिन्होंने दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कटाया था।


◆ सुतीक्ष्ण – अगस्त्य ऋषि के शिष्य, एक ऋषि।


◆ मतंग – ऋषि, पंपासुर के निकट आश्रम, यही शबरी भी रहती थी।


◆ वसिष्ठ – अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं के गुरु।


◆ विश्वमित्र – राजा गाधि के पुत्र, राम-लक्ष्मण को धनुर्विधा सिखायी थी।


◆ शरभंग – एक ऋषि, चित्रकूट के पास आश्रम।


◆ सिद्धाश्रम – विश्वमित्र के आश्रम का नाम।


◆ भरद्वाज – बाल्मीकी के शिष्य, तमसा नदी पर क्रौच पक्षी के वध के समय वाल्मीकि के साथ थे, माँ-निषाद’ वाला श्लोक कंठाग्र कर तुरंत वाल्मीकि को सुनाया था।


◆ सतानन्द – राम के स्वागत को जनक के साथ जाने वाले ऋषि।


◆ युधाजित – भरत के मामा।


◆ जनक – मिथिला के राजा।


◆ सुमन्त्र – दशरथ के आठ मंत्रियों में से प्रधान।


◆ मंथरा – कैकयी की मुंह लगी दासी, कुबड़ी।


◆ देवराज – जनक के पूर्वज-जिनके पास परशुराम ने शंकर का धनुष सुनाभ (पिनाक) रख दिया था।


◆ अयोध्या – राजा दशरथ के कोशल प्रदेश की राजधानी, बारह योजना लंबी तथा तीन योजन चौड़ी, नगर के चारों ओर ऊँची व चौड़ी दीवारें व खाई थीं। राजमहल से आठ सड़के बराबर दूरी पर परकोटे तक जाती थी।

मित्रों मैंने ये सारे तथ्य कई जगह से संग्रह किये हैं त्रुटि हो सकती है। अतः यदि कहीं कोई त्रुटि या कमी हो, तो अवश्य अवगत करायें।। 


जय श्री राम 🙏

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