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बुधवार, 31 अगस्त 2022

Bhadra pad Shukla Bhadra Shubh

 


शुक्ल पक्ष की चतुर्थी व एकादशी तथा कृष्ण पक्ष की तृतीया व दशमी तिथि वाली भद्रा दिन में शुभ होती है, केवल रात्रि में अशुभ होती है। - शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी तिथि वाली भद्रा रात्रि में शुभ होती है, केवल दिन में अशुभ होती है।

भद्रा में भूलकर न करें ये काम

 


कैसे हुई भद्रा की उत्पत्ति -

पौराणिक कथाओं के अनुसार दैत्यों को मारने के लिए सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया से गर्दभ (गधा) के मुख और लंबी पूंछ और तीन पैर युक्त भद्रा उत्पन्न हुई. जन्म लेते ही भद्रा यज्ञों में विघ्न पहुंचाने लगी और मंगल-कार्यों में उपद्रव करने लगी तथा जगत को पीड़ा पहुंचाने लगी.


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भद्रा कौन सी शुभ होती है?

 

भद्रा कौन सी शुभ होती है?
- शुक्ल पक्ष की चतुर्थी व एकादशी तथा कृष्ण पक्ष की तृतीया व दशमी तिथि वाली भद्रा दिन में शुभ होती है, केवल रात्रि में अशुभ होती है। - शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी तिथि वाली भद्रा रात्रि में शुभ होती है, केवल दिन में अशुभ होती है।

भद्रा का मतलब क्या होता है?

 

भद्रा का मतलब क्या होता है?
यूं तो 'भद्रा' का शाब्दिक अर्थ है 'कल्याण करने वाली' लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या या उनका नाश करने वाली मानी गई है।

भद्रा से बचने के उपाय Bhadra upay

 भद्रा से बचने के उपाय

ज्योतिष शास्त्र में भद्रा के दुष्प्रभावों से बचने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं। अगर भद्रा में कोई कार्य कर रहे हैं तो सुबह उठकर भद्रा के बारह नाम का स्मरण करें और भद्रा की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से भद्रा का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता है और आपके कार्य बिना किसी अड़चन के पूरे हो जाते हैं।

भद्रा को 12 नामों से जाना जाता है-
धन्या, दधमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारूद्रा, विष्टि, कुल पुत्रिका, भैरवी, महाकाली और असुर क्षयकारी

शनिवार, 27 अगस्त 2022

Ganesh ji ki Mahatta

1. गणपति को दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं?

दूर्वा एक प्रकार की घास है, जो गणेशजी को पूजा में चढ़ाई जाती है। गणेशजी और दूर्वा के संबंध में अनलासुर नाम दैत्य की कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार सभी देवता और मनुष्य अनलासुर के आतंक से त्रस्त थे। तब देवराज इंद्र, सभी देवी-देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव के पास पहुंचे। शिवजी ने कहा कि ये काम सिर्फ गणेश ही कर सकते हैं। इसके बाद सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान गणेश के पास पहुंचे।

देवी-देवताओं और सभी प्राणियों की रक्षा के लिए गणपति अनलासुर से युद्ध करने पहुंचे। तब इन दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। अनलासुर पराजित ही नहीं हो रहा था, तब भगवान गणेश ने उसे पकड़कर निगल लिया। इसके बाद उनके पेट में बहुत जलन होने लगी।

भगवान गणेश के पेट की जलन शांत करने के लिए कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर उन्हें खाने के लिए दी। जैसे ही उन्होंने दूर्वा खाई, उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई।
 

2. गणपति, लक्ष्मी और सरस्वती एक साथ क्यों पूजे जाते हैं?

भगवान गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती की एक साथ पूजा खासतौर पर दीपावली पर की जाती है। दीपावली सुख-समृद्धि का पर्व माना जाता है। इस दिन गणेश यानी बुद्धि, लक्ष्मी यानी धन और सरस्वती यानी ज्ञान की पूजा एक साथ की जाती है। क्योंकि, बिना बुद्धि के ज्ञान नहीं आ सकता और बिना ज्ञान के लक्ष्मी अर्जित नहीं की जा सकती। इस लिए लक्ष्मी पूजन में भगवान गणेश को भी पूजा जाता है। गणेश पुराण और शिव पुराण में भी ये कहा गया है कि लक्ष्मी की पूजा गणपति के बिना अधूरी है, बिना बुद्धि के देवता के शुद्ध लक्ष्मी का आगमन नहीं हो सकता।

3.गणपति को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाते हैं?

भगवान विष्णु और उनके अवतारों को तुलसी के बिना भोग नहीं लगाया जाता है, लेकिन भगवान गणेश की पूजा में तुलसी वर्जित मानी गई है। एक पौराणिक कथा है कि तुलसी ने भगवान गणेश से विवाह करने की प्रार्थना की थी, लेकिन गणेशजी ने मना कर दिया। इस वजह तुलसी क्रोधित हो गईं और उसने गणेशजी को दो विवाह होने का शाप दे दिया।

इस शाप की वजह से गणेशजी भी क्रोधित हो गए और उन्होंने भी तुलसी को शाप देते हुए कहा कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा। असुर से विवाह होने का शाप सुनकर तुलसी दुःखी हो गई। तुलसी ने गणेशजी से क्षमा मांगी। तब गणेशजी ने कहा तुम्हारा विवाह असुर से होगा, लेकिन तुम भगवान विष्णु को प्रिय रहोगी। तुमने मुझे शाप दिया है, इस वजह से मेरी पूजा में तुलसी वर्जित ही रहेगी।

शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

POLA PARVA 2022

 

पोला त्योहार मनाने के पीछे यह कहावत है कि अगस्त माह में खेती-किसानी का काम समाप्त होने के बाद इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है यानी धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार पुरुषों-स्त्रियों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है। इस दिन पुरुष पशुधन (बैलों) को सजाकर उनकी पूजा करते हैं। इसके साथ ही इस दिन 'बैल सजाओ प्रतियोगिता' का आयोजन किया जाता है।
 
महिलाएं इस त्योहार के वक्त अपने मायके जाती हैं। छोटे बच्चे मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं। इस दिन शहर से लेकर गांव तक पोला पर्व की धूम रहती है। इस दौरान जगह-जगह बैलों की पूजा-अर्चना होती है। 
 
पर्व के 2-3 दिन पहले से ही बाजारों में मिट्टी के बैलजोड़ी बिकते दिखाई देते हैं। बढ़ती महंगाई के कारण इनके दामों में भी बढ़ोतरी हो गई है। इसके अलावा मिट्टी के अन्य खिलौनों की भी भरमार बाजारों में दिखाई देती है। पिठोरी अमावस्या के दिन मिट्टी और लकड़ी से बने बैल चलाने की भी परंपरा है।
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